Diary Of Shayari - शायरी कि डायरी

Friday, 17 January 2014

Guar diwaro mei bathe lagta hai

  • बुलंदियों का गुमाँ, जो करने लगता है। मुक़द्दर भी उसका, पलटने लगता है ॥ करें तो करें क्या गिला, किसी से यहाँ, धूप में साया भी, सिमटने लगता ... thumbnail 1 summary

    बुलंदियों का गुमाँ, जो करने लगता है।
    मुक़द्दर भी उसका, पलटने लगता है ॥
    करें तो करें क्या गिला, किसी से यहाँ,
    धूप में साया भी, सिमटने लगता है ॥
    रिश्तों में गर दूरियाँ, बढ़ जाए तो,
    घर, दीवारों में फिर, बँटने लगता है ॥

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