Diary Of Shayari - शायरी कि डायरी

Saturday 15 March 2014

Court Marshal::Latest Indian Army Poem

  • "कोर्ट मार्शल" आर्मी कोर्ट रूम में आज एक केस अनोखा अड़ा था छाती तान अफसरों के आगे फौजी बलवान खड़ा था . बिन हुक्म बलवान तूने ये... thumbnail 1 summary
    "कोर्ट मार्शल"

    आर्मी कोर्ट रूम में आज एक
    केस अनोखा अड़ा था
    छाती तान अफसरों के आगे
    फौजी बलवान खड़ा था
    .
    बिन हुक्म बलवान तूने ये
    कदम कैसे उठा लिया
    किससे पूछ उस रात तू
    दुश्मन की सीमा में जा लिया
    .
    बलवान बोला सर जी! ये बताओ
    कि वो किस से पूछ के आये थे
    सोये फौजियों के सिर काटने का
    फरमान कोन से बाप से लाये थे
    .
    बलवान का जवाब में सवाल दागना
    अफसरों को पसंद नही आया
    और बीच वाले अफसर ने लिखने
    के लिए जल्दी से पेन उठाया
    .
    एक बोला बलवान हमें ऊपर जवाब देना है
    और तेरे काटे हुए सिर का पूरा हिसाब देना है
    .
    तेरी इस करतूत ने हमारी नाक कटवा दी
    अंतरास्ट्रीय बिरादरी में तूने थू थू करवा दी
    .
    बलवान खून का कड़वा घूंट पी के रह गया
    आँख में आया आंसू भीतर को ही बह गया
    .
    बोला साहब जी! अगर कोई
    आपकी माँ की इज्जत लूटता हो
    आपकी बहन बेटी या पत्नी को
    सरेआम मारता कूटता हो
    .
    तो आप पहले अपने बाप का
    हुकमनामा लाओगे ?
    या फिर अपने घर की लुटती
    इज्जत खुद बचाओगे?
    .
    अफसर नीचे झाँकने लगा
    एक ही जगह पर ताकने लगा
    .
    बलवान बोला साहब जी गाँव का
    ग्वार हूँ बस इतना जानता हूँ
    कौन कहाँ है देश का दुश्मन सरहद
    पे खड़ा खड़ा पहचानता हूँ
    .
    सीधा सा आदमी हूँ साहब !
    मै कोई आंधी नहीं हूँ
    थप्पड़ खा गाल आगे कर दूँ
    मै वो गांधी नहीं हूँ
    .
    अगर सरहद पे खड़े होकर गोली
    न चलाने की मुनादी है
    तो फिर साहब जी ! माफ़ करना
    ये काहे की आजादी है
    .
    सुनों साहब जी ! सरहद पे
    जब जब भी छिड़ी लडाई है
    भारत माँ दुश्मन से नही आप
    जैसों से हारती आई है
    .
    वोटों की राजनीति साहब जी लोकतंत्र का मैल है
    और भारतीय सेना इस राजनीति की रखैल है
    .
    ये क्या हुकम देंगे हमें जो खुद ही भिखारी हैं
    किन्नर है सारे के सारे न कोई नर है न नारी है
    .
    ज्यादा कुछ कहूँ तो साहब जी
    दोनों हाथ जोड़ के माफ़ी है
    दुश्मन का पेशाब निकालने को
    तो हमारी आँख ही काफी है
    .
    और साहब जी एक बात बताओ
    वर्तमान से थोडा सा पीछे जाओ
    .
    कारगिल में जब मैंने अपना पंजाब
    वाला यार जसवंत खोया था
    आप गवाह हो साहब जी उस वक्त
    मै बिल्कुल भी नहीं रोया था
    खुद उसके शरीर को उसके गाँव
    जाकर मै उतार कर आया था
    उसके दोनों बच्चों के सिर साहब जी
    मै पुचकार कर आया था
    .
    पर उस दिन रोया मै जब उसकी
    घरवाली होंसला छोड़ती दिखी
    और लघु सचिवालय में वो चपरासी
    के हाथ पांव जोड़ती दिखी
    .
    आग लग गयी साहब जी दिल
    किया कि सबके छक्के छुड़ा दूँ
    चपरासी और उस चरित्रहीन
    अफसर को मै गोली से उड़ा दूँ
    .
    एक लाख की आस में भाभी
    आज भी धक्के खाती है
    दो मासूमो की चमड़ी धूप में
    यूँही झुलसी जाती है
    .
    और साहब जी ! शहीद जोगिन्दर
    को तो नहीं भूले होंगे आप
    घर में जवान बहन थी जिसकी
    और अँधा था जिसका बाप
    .
    अब बाप हर रोज लड़की को
    कमरे में बंद करके आता है
    और स्टेशन पर एक रूपये के
    लिए जोर से चिल्लाता है
    .
    पता नही कितने जोगिन्दर जसवंत
    यूँ अपनी जान गवांते हैं
    और उनके परिजन मासूम बच्चे
    यूँ दर दर की ठोकरें खाते हैं..
    .
    भरे गले से तीसरा अफसर बोला
    बात को और ज्यादा न बढाओ
    उस रात क्या- क्या हुआ था बस
    यही अपनी सफाई में बताओ
    .
    भरी आँखों से हँसते हुए बलवान बोलने लगा
    उसका हर बोल सबके कलेजों को छोलने लगा
    .
    साहब जी ! उस हमले की रात
    हमने सन्देश भेजे लगातार सात
    हर बार की तरह कोई जवाब नही आया
    दो जवान मारे गए पर कोई हिसाब नही आया
    .
    चौंकी पे जमे जवान लगातार
    गोलीबारी में मारे जा रहे थे
    और हम दुश्मन से नहीं अपने
    हेडक्वार्टर से हारे जा रहे थे
    .
    फिर दुश्मन के हाथ में कटार देख
    मेरा सिर चकरा गया
    गुरमेल का कटा हुआ सिर जब
    दुश्मन के हाथ में आ गया
    .
    फेंक दिया ट्रांसमीटर मैंने और
    कुछ भी सूझ नहीं आई थी
    बिन आदेश के पहली मर्तबा सर !
    मैंने बन्दूक उठाई थी
    .
    गुरमेल का सिर लिए दुश्मन
    रेखा पार कर गया
    पीछे पीछे मै भी अपने पांव
    उसकी धरती पे धर गया
    .
    पर वापिस हार का मुँह देख के
    न आया हूँ
    वो एक काट कर ले गए थे
    मै दो काटकर लाया हूँ
    .
    इस ब्यान का कोर्ट में न जाने
    कैसा असर गया
    पूरे ही कमरे में एक सन्नाटा
    सा पसर गया
    .
    पूरे का पूरा माहौल बस एक ही
    सवाल में खो रहा था
    कि कोर्ट मार्शल फौजी का था
    या पूरे देश का हो रहा था ?

    Doston, Ek Baar...ise itna faila do ki saare
    netaon ko thodi bahut sharam aa jaye.

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