Diary Of Shayari - शायरी कि डायरी

Sunday, 1 June 2014

ज़िन्दगी यूँ ही रेत सी फिसलती जा रही है आजकल

  • वो पुरानी यादें, यूँही सिमटती जा रही है आजकल, बस चंद लम्हों में, बिखरती जा रही है आजकल... एक चिंगारी उठा लाये थे कभी अपनी ही बेसुधी में, ... thumbnail 1 summary

    वो पुरानी यादें, यूँही सिमटती जा रही है आजकल,
    बस चंद लम्हों में, बिखरती जा रही है आजकल...
    एक चिंगारी उठा लाये थे कभी अपनी ही बेसुधी में,
    वही आग बन कर हमें जला रही है आजकल...
    ये कदम तो पहले भी बहके हैं होश खो कर,
    मगर, ये राहें खुद बहकती जा रही है आजकल...
    अच्छे और बुरे, ज़िन्दगी में लोग कितने ही मिले,
    धुंधली सी एक याद होती जा रही है आजकल...
    जिस ज़मीं पर छोड़ आए थे निशाँ क़दमों के हम,
    वो ज़मीं ही खिसकती जा रही है आजकल...
    याद शाम की कभी आना कोई हैरत नहीं मगर,
    हर घड़ी उस शाम में ढ़लती जा रही है आजकल...
    ज़िन्दगी के थे कई मकसद हमारे भी अज़ीम मगर,
    ज़िन्दगी यूँ ही रेत सी फिसलती जा रही है आजकल...

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